ट्रिपल तलाक का तोहफा मुस्लिम औरतों को, आधी आबादी की सुरक्षा की गारंटी कौन देगा ?
बाबा साहेब ने कहा था, ‘ मैं उस धर्म को पसद करता हूं, जो स्वतंत्रता, समानता और भाईचारा सिखाता है।’ लेकिन यहां तो होड है ऊंच-नीच की। जावेद अख्तर को जताने, बताने की। खुद को श्रेष्ठ दिखाने की। पंजाबी की कहावत है, ‘ अग्गा दौड, पिछा चौड।’ मतलब आगे दोडते जाएं, पीछे क्या हो जाए क्या परवाह? महाराष्ट्र पर यह कहावत स्टीक साबित होती है। पिछले कई दिनों से जावेद अख्तर को निशाने पर लिया जा रहा है। महाराष्ट्र में क्या हो रहा कोई परवाह नहीं? पुणे इस सूबे की अहम जगह है। सांस्कृतिक कैपिटल कही जाती है। मुंबई को मुल्क की आर्थिक राजधानी बताया जाता है। दोनों जगहों पर आधी आबादी पर जुल्म नहीं दरिंदगी हुई। जिसने दरिंदगी की परिभाषा ही बदल कर रख दी। महाराष्ट्र में पिछले 10-11 दिनों से जो हो रहा है। इन्तहा है। इनसानियत शर्मसार है। बच्चियों और महिलाओं का कोई खैर-ख्वाह नहीं। कुदरत भी इसकी भरपाई नहीं कर सकती। लेकिन महाराष्ट्र सरकार के लिए तो हिन्दु-मुसलमान का तराना ही सत्ता का सुख है। हिन्दुओं का यह तराना कॉश! अबलाओं को सबल बना पाता। ट्रिपल तलाक से निजात का तोहफा मुस्लिम औरतों को तो मिल गया। गैर-मुस्लिम महिलाओं की सुरक्षा की गारंटी। किस से लें? आरएसएस के चीफ तो कहते ही हैं कि शादी एक समझौता है। महिलाएं सिर्फ घर की चौकीदारी तक सीमित रहे। हालांकि मोहन भागवत ने एक जरुरी बात यह कही कि पुरुषों को महिलाओं की सुरक्षा निश्चित करनी चाहिए। लेकिन पुरुष ही बच्चियों और महिलाओं को नोच रहे हैं। तस्दीक करती है महाराष्ट्र की 4 वारदात।