जावेद अख्तर की जुबां बंद कराना मतलब संविधान का अपमान

तालिबान फिर सत्ता सुख भोगने जा रहा है। 20 बरस बाद। तालिबान को सत्ता का सुख हासिल होने जा रहा है। तालिबान की सत्ता ने दुनिया में हायतौबा मचा रखी है। इस हायतौबा का असर सबसे ज्यादा कहीं है तो आपने मुल्क में है। तालिबान की मान्यता पर जबरदस्त बहस छिड चुकी है। वरिष्ठ पत्रकार अजित दिव्वेदी को लगता है कि जावेद अख्तर तालिबान की वैधता के सबसे बडे तलबगार हैं। अजित दिव्वेदी इसके साथ ही कई और नाम जोड रहे हैं। टीवी पत्रकार संदीप चौधरी का सवाल है तालिबान आतंकी है, क्या उससे बातचीत होगी ? जनरल परवेज मुशर्रफ क्या था ? फौज की वर्दी में सरगना। कारगिल में उसने कौन सी जुर्रत नहीं की। फिर भी एनडीए की अटल बिहारी वाजपेयी हुकूमत ने उससे बातचीत की थी। द्विपक्षीय रिश्तों की खातिर बातचीत। कूटनीति शायद यहीं कहती है। कोई आतंकी हो या दूसरा। जब हुकूमरान बन गया तो द्विपक्षीय रिश्तों की खातिर बातचीत तय हो जाती है। फिर भारत तो अफगान का पुराना दोस्त है। दीगर है कि चीन, रुस और पाकिस्तान अब नए अफगन के जिगरी दोस्त बनने की कवायद में जुट गए हैं। आतंकी टोले तालिबान के सबसे बडे हिमायती होने का दम भर रहे हैं। तालिबान को लेकर ही पिछले दिनों प्रधान सेवक साहेब ने प्रेसिडेंट पुतिन के साथ बातचीत की थी। रुस की सिक्योरटी कौंसिल के सर्वोसर्वा निकोले पाटरुचेव आपनी हालिया भारत यात्रा के दौरान पीएम तक से मिले। इसके बावजूद रुस तालिबान को वैधता दे रहा है। फिर जावेद अख्तर की वैधता का क्या मतलब?

रुस, चीन, पाकिस्तान जिस तरह से तालिबान की हिमायत कर रहा है और भारत, अमेरिका जिस तरह से तालिबान के खदशे जाहिर कर रहा है। इससे दुनिया दो हिस्सो में बंट कर रह गई है। बात को आगे बढाने से पहले ज़रा समझ ले तालिबान है क्या बला ? सितंबर 1994 को तालिबान की नींव रखी गई। पश्तो जुबान में स्टूडेंट्स को तालिबान कहा जाता है। पश्तो आंदोलन धार्मिक मदरसों से उभरा था। जिसको खाद-पानी सउदी अरब ने दिया। सुन्नी इस्लाम की कट्टर मान्यताओं का प्रचार और शरिया क़ानून के कट्टरपंथी संस्करण को लागू करना इस संगठन का मकसद है। सोवियत संघ ने जब अफ़ग़ानिस्तान से अपनी फौजों सैनिकों को वापस बुलाना शुरु किया। तब मुल्ला उमर ने तालिबान की रचना कर डाली। दक्षिण-पश्चिम अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान का प्रभाव तेजी से बढ़ा। आपनी स्थापना के साल भर में तालिबान ने हेरात प्रांत पर कब्ज़ा किया। 1996 में तालिबान ने 27 सितंबर को प्रेसिडेंट नजीबल्लाह को सरेराह फांसी देकर अफगानिस्तन में हुकूमत कर ली। यह है तालिबान का इतिहास। तालिबानी कट्टर है। कट्टर लोग हमेशा आतंक और अलगाववाली मानसिकता के होते हैं। इसमें कोई शक नहीं कि इसी कट्टरवादिता के चलते बहुत सारे इस्लामी संगठन दुनिया में खून-खराबा कर रहे हैं। हमास, आईएसआईएस ऐसे कई नाम हैं खून-खराबा जिनका जुनून बन गया है। कई भारतीय मुस्लमान भी आईएसआईएस में भरती हैं। मुल्क के लिए यह बेहद फिकरमंदी की बात है। लेकिन इस फिकरमंदी की जगह मुल्क में हो कुछ और ही रहा है। हो रहा है प्रोपेगंडा। नेरेटिव बनाने की ज़ोरदार कोशिशें। बहाना तालिबान।

पहले-पहल तो लगा कि जावेद अख्तर का दुस्साहस लुटियन की दिल्ली में बैठे हुकूमरानों को आंख दिखाने का है। लेकिन जिस तरह से बीजेपी, शिवसेना,वरिष्ठ पत्रकार अजित दिव्वेदी औऱ कई दूसरे हिन्दु संगठन जावेद अख्तर पर टूट पडे।  लगता है कि पूरा हिन्दु समाज इस सुगबगाहट में है कि इस मौके को हाथ से जाने न दिया जाए। मैं जावेद अख्तर साहेब का वकील नहीं। लेकिन संविधान की बात कर रहा हूं। जावेद अख्तर ने जो कहा। उसकी मज्जमत का हक सभी को है। करें। लेकिन जावेद अख्तर को भी तो अधिकार है आपनी बात रखने का। यह अधिकार उन्हें संविधान प्रदत्त है। बाबा साहेब भीम राव अंबेदकर के भारतीय संविधान में। बाबा साहेब के संविधान का जिकर अजित दिव्वेदी ने भी किया है। लेकिन साथ ही शरीयत के बहाने कुरान को भी आडे हाथों लिया है। इसके मायनों पर गौर करना जरुरी और लाजिमी भी। कुरान की खिल्ली उडाएं। किसी ने आपको रोका नहीं। लेकिन संविधान की दुहाई देकर नेरेटिव बनाने की इजाजत अजित भाई यह औछी हरकत है। इस नेरेटिव से संविधान को तिलांजलि देने की कोशिश हो रही है। आपने बाखूबी लिखा है कि मॉब लिंचिंग कानून-व्यवसथा का मामला है। साथ ही आप यह भी स्पष्ट कर रहे हैं कि मॉब लिंचिंग कइयों का धंधा बन गया है। धंधा बनाया किसने? भगवा ब्रिगेड को जब चौथी बार दिल्ली की सलत्नत पर हुकूम चलाने का हक मिला तो 28 सितंबर 2015 को नोयडा के गांव बिसाहडा में पहली मॉब लिंचिंग हुई। -अपन तो कहेंगे- हरिशंकर व्यास साहेब आपने इस कॉलम में इसकी तस्दीक करते हैं। आपके और मेरे दोनों के वरिष्ठ हैं जनाब हरिशंकर व्यास साहेब। लेकिन आपने आपने कॉलम नब्ज पर हाथ के तहत इसका जिकर नहीं किया। क्योंकि आपके अंदर का हिन्दु इसे करने से आपको रोक पाने में कामयाब रहा। आपकी निगाह में जावेद अख्तर विलेन। मेरी निगाह में आप खलननायक। मैं बाबा साहेब भीम राव अंबेदकर का उपासक। संविधान मेरा ग्रंथ। आप हिन्दु। मैं हिन्दु नहीं। ना मुझे कबी हिन्दु बन वहम में जीना है। मैं दलित हूं। दलित ही आखिरी दम तक रहना है। इसलिए मैं जावेद अख्तर के संविधान प्रदत्त अधिकार का समर्थन करता हूं।

-मनोज नैय्यर

journalistmanojnayyar@gmail.com

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